काश! तुम हमारे होते (कहानी) प्रतियोगिता हेतु25-Feb-2024
दिनांक -25,0 2, 2024 दिवस- रविवार प्रदत विषय-काश! तुम हमारे होते(कहानी) प्रतियोगिता हेतु
बात उन दिनों की है जब त्रिव्या स्नातक तृतीय वर्ष की छात्रा थी और उसके पिता उसकी शादी को लेकर बहुत परेशान थे। तभी उनके किसी रिश्तेदार ने वाराणसी के धौलपुर गाँव में एक लड़का बताया। त्रिव्या के पिता और भाई लड़के को देखने गए। लड़के का घर- परिवार, लड़का सब त्रिव्या के पिता को बहुत पसंद आया। त्रिव्या के पिता खुशी-खुशी घर आए और उन्होंने त्रिव्या की मांँ को लड़के के घर- परिवार के बारे में बताया। पूरे घर में एक खु़शी की लहर दौड़ गई। फिर एक सप्ताह बाद लड़के के दादाजी का फ़ोन आया कि हमें लड़की पसंद है हमें दान- दहेज कुछ भी नहीं चाहिए भगवान का दिया हमारे घर सब कुछ है लेकिन एक बार मैं लड़का-लड़की के कुंडली का मिलान करवाना चाहता हूंँ। क्योंकि हमारे घर में पहले कुंडली का मिलान न करवाने से दुर्घटना हो चुकी है।
त्रिव्या के पिता कुंडली लेकर लड़के के यहांँ गए और जब कुंडली का मिलान हुआ तो लड़का-लड़की के बीच नाड़ी दोष निकल गया।
लड़के के दादाजी ने अफ़सोस जताते हुए कहा, हमें रिश्ता बहुत पसंद था लेकिन मैं किसी लड़की की ज़िंदगी से खिलवाड़ नहीं कर सकता। मैं आपकी बेटी को अपनी बहू नहीं बना सकता। हांँ वो मेरी बेटी सदा रहेगी।
त्रिव्या के पिता उदास मन से अपने घर लौट आए और घर में छाई हुई खुशी उदासी में बदल गई। दो-चार महीने बीते फिर एक रिश्तेदार ने एक दूसरा लड़का बताया जो हरियाणा का रहने वाला था। त्रिव्या के पिताजी उस लड़के को भी देखने गए। उन्हें लड़का पसंद आ गया शादी की तैयारी शुरू हुई, धूम-धाम से त्रिव्या के घर वालों ने त्रिव्या की शादी कर दी।
त्रिव्या पढ़ने- लिखने में, घर के काम-काज में, अतिरिक्त कार्यों में सबमें अव्वल दर्जें की थी। किंतु जब वह ससुराल गई तो वहांँ जाकर उसके साथ ऐसा बर्ताव होने लगा कि उसकी सारी बुद्धि गायब हो गई। उसको समझ ही नहीं आता था कि वह क्या करें? कैसे करें ?क्योंकि उसके हर काम में मीन-मेख निकाला जाता था। ग़लती ना होने पर भी उसे ग़लत ठहराया जाता था।
त्रिव्या की स्थिति अधमरे साँप जैसी हो गई थी। वह हर काम डर- डरके करती। जब इस बात का पता जहांँ पहले त्रिव्या की शादी फाइनल हुई थी, उस लड़के के दादाजी को चला तब उन्हें बड़ा ही अफ़सोस हुआ।और उन्होंने एक दिन फ़ोन करके त्रिव्या के पिताजी को बुलाया। उनका हाल-चाल दिया और कहा मैंने आपसे कहा था कि मैं आपकी बेटी को अपनी बहू तो नहीं बन सकता लेकिन मैं बेटी सदा बना कर रखूँगा। आपने त्रिव्या की शादी कर दी, मुझे बताया तक नहीं,पूछा तक नहीं। इतनी दूर शादी कर दिया आपने कि हकीकत भी नहीं पता चला। और इस तरह त्रिव्या की ज़िंदगी बर्बाद हो गई।
काश मेरे दोनों बच्चों के मध्य नाड़ी दोष ना निकला होता, काश आप हमारे समधि होते ,तो हमारा परिवार एक खुशहाल परिवार होता। तभी त्रिव्या के पिता के भी मुंँह से निकला काश! आप हमारे होते और इस तरह से दोनों एक दूसरे के गले लग गए।
अब त्रिव्या के दो-दो पिता हो गए थे। दोनों त्रिव्या के ससुराल गए, उसकी विदाई कराए। उसके पश्चात उन्होंने त्रिव्या को कभी वहांँ नहीं भेजा। उसको आगे पढ़ाया लिखाया, एक बड़े ही संस्कारी परिवार में उसकी शादी किया। शादी के दिन त्रिव्या ने अपने धर्म के पिता से कहा काश! आप हमारे पिता होते। त्रिव्या की इस बात को सुनकर उसके धर्म के पिता ने उसे गले लगा लिया और उस शादी में उन्होंने भी कन्यादान किया और इस तरह से दोनों पिताओं के एक सही निर्णय की वज़ह से त्रिव्या की बर्बाद हुई ज़िंदगी आबाद हो गई।
सीख- रिश्ते सगे हों या मुंँह बोले किंतु रिश्तों को दिल से निभाना चाहिए। दिल से निभाए गए रिश्तों से जो ख़ुशी मिलती है,वह अकल्पनीय, अवर्णनीय होती है।
साधना शाही, वाराणसी
hema mohril
28-Feb-2024 04:17 PM
V nice
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kashish
27-Feb-2024 02:26 PM
Amazing
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Varsha_Upadhyay
26-Feb-2024 07:28 PM
Nice
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